Tuesday, March 31, 2009

जन भाषा हिन्दी



साथियों मै अक्सर ये सोचता हूँ की हमारे भारत में सबसे ज्यादा लोग हिन्दी बोलते है फिर भी हम आज हिन्दी को वो स्थान नही दिला पाये जिसकी वो हक़दार है। हिन्दी हमारी भाषा ही नही है बल्कि ये हमारी पचान है, हमारा धर्म है। अक्सर ये खबरें आती है की लोग अंग्रेजी न बोल पाने की वजह से अपनी जान तक दे देते है , मै अंग्रेजी का विरोधी नही हूँ, एक भाषा के तौर पे उसका अध्ययन जरुरी है लेकिन अपनी हिन्दी भाषा की कीमत पर कत्तई नही। आज लोगों को हिन्दी बोलने में शर्म आती है। मैख़ुद हिन्दी को जीता हूँ और हिन्दी ही मेरा माध्यम है और हमेशा रहेगा। मुझे कोई शर्म नही आती है। हिन्दी भाषा के जो शब्द है वो अदभुतहै। कितनी सरल और निश्चल है ये भाषा । हिन्दी का अपमान मतलब इस राष्ट्र का अपमान , अपनी भारत माता का अपमान। और कोई भी सपूत अपनी माता का अपमान होते नही देख सकता है।


तो क्या हम और आप भाषा की इस ज़ंग में हमकदम होंगे। आए इस ज़ंग को सुबह होने तक जारी रखें, जय हिन्दी -जय हिन्दुस्तान।


अब कुछ बिस्मिल के बारे में, जिसमे उनका इस हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम दिखता है,


बिस्मिल की कल्पना कोरी नही थी ,उनमे बलिदान की प्रखर भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। हिन्दुस्तान के प्रत्येक नागरिक में हिन्दी भावना,हिन्दी भाषा के प्रति अगाध प्रेम तथा भारतीयता की सोच प्रस्तुत करती हुई उनकी इस कविता का यहाँ प्रसंगवश उल्लेख कर रहा हूँ,


न चाहूँ मान दुनिया में ,न चाहूँ स्वर्ग को जाना


मुझे वर दे यही माता,रहूँ भारत पे दीवाना


करूँ मै कोम की सेवा,पड़े चाहे करोड़ों दुःख


अगर फिर जन्म लूँ आकर तो हो भारत में ही आना


मुझे हो प्रेम हिन्दी से,पढूं हिन्दी,लिखूं हिन्दी


चलन हिन्दी चलूँ हिन्दी पहनना ओढ़ना खाना


रहे मेरे भवन में रोशनी हिन्दी चिरागों की


की जिसकी लौ पे जलकर खाक हो बिस्मिल सा परवाना



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