Friday, May 22, 2009

बदहाल गाँधी न्यास भवन .........

अभी कुछ दिनों से हिन्दी के एक प्रमुख अख़बार में एक विदेशी कंपनी जो की अन्तःवस्त्र का निर्माण करती है, उसका विज्ञापन देखने को मिला। दरअसल इस कंपनी की सेल लगी थी जिसमे कुछ छूट दी जा रही थी। असल बात तो यह है की यह सेल भोपाल के गाँधी न्यास भवन में लगायी गई थी। यह कोई पहली बार नही था , इससे पहले भी ऐसे कृत्य किए जाते रहे है। एक तरफ़ तो बापू की लिखी और चर्चित पुस्तक हिंद स्वराज का सौवा वर्ष चल रहा है वही दूसरी तरफ़ बापू के नाम से बनी इस ईमारत में ये सब हो रहा है। अरे भाई अगर सेल लगानी है तो किताबों की लगाओ , साहित्य की लगाओ। कम से कम बापू के नाम की तो लाज रखो। वैसे सरकार के पास बहुत पैसा है लेकिन इन सब संस्थानों की बेहतरी के लिए वो कुछ नही करना चाहती है। गाँधी जी हर हाथ में काम की बात करते थे, खादी ख़ुद बनाते और पहनते थे लेकिन आज उस खादी के साथ क्या हो रहा है ये सबको पता है। जाहिर सी बात है की इसके लिए यहाँ की सरकार ही दोषी है। आश्चर्यतो तब होता है जब कोई भी इसके ख़िलाफ़ आवाज नही उठाता है न तो जन-मानस और न ही विज्ञापन देने वाले ये अखबार। यार अब ऐसा भी क्या की पैसा कमाने के लिए सारे मूल्यों को ही ध्वस्त कर दिया जाए। कम से कम इतना तो रखो की हमारी आने वाली पीढियां बापू को महात्मा गाँधी के तौर पे ही जाने...................