Friday, December 5, 2008

पाकिस्तान पर दबाव ........................

मुंबई बम धमाको में जितने भी सबूत जांच एजेंसियों को मिले है वे सब पाकिस्तान की ओर इशारा कर रहे है। अभी कुछ दिनों पहले जरदारी ने कहा था की वो इन धमाकों की जांच में पूरा सहयोग देंगे, उन्होंने आई एस आई के प्रमुख को भारत भेजने की बात कही लेकिन एक बार फिर वो अपनी बात से पलट गए। इससे पता चलता है आज भी पाकिस्तान में सैन्य शासन ही है। दरअसल जिस आग में अब भारत जल रहा है ,पाकिस्तान उसमे काफी पहले से जल रहा है ,इसके बाद भी इस तरह का ब्यवहार समझ से परे है। हो सकता है की इन आतंकवादी गुटों को वहा की सरकार और सेना का समर्थन न हो लेकिन ये भी सही है की वो पाकिस्तान की जमीन से ही ये सब कर रहे है। अमेरिका के अलावा दुनिया के कई देशों ने इन हमलों की कड़ी निंदा की है ,अमेरिका ने पाकिस्तान से साफ़ -साफ़ कहा है की वो अपने देश में चल रहे आतंकवादी शिविरों को खत्म करे। भारत को इस समय सबका समर्थन मिल रहा है , ऐसे में सीधी कार्यवाही न करके पाकिस्तान पर अन्तराष्ट्रीय दबाव बनाना चाहिए , सुरक्षा परिषद् से उसकी कड़ी निंदा करवाना चाहिए ताकि वो मजबूर होकर कड़े कदम उठाये।

Tuesday, December 2, 2008

कहा है हम................

अभी देश में ६ राज्यों के विधान सभा चुनाओं की प्रक्रिया चल रही है, कुछ-एक राज्य में मतदान होना बाकी है। कहा जा रहा है की इन चुनाओं की छाप अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाओं पर पड़ेगी। जाहिर है भाजपा और कांग्रेस के लिए ये सेमीफाइनल है । आज हम किस संकट में है इसको समझना मुश्किल नही है। देश का हर नागरिक इसके बारे में ज्यादा नही तो थोड़ा-बहुत तो जानता ही है,मसलन महंगाई, गरीबी,बेरोजगारी, अपराध ,भ्रस्टाचार,कुपोषण आदि। ये तो सिर्फ़ बानगी भर है वरना अगर मै सब लिखने बैठ जाऊँ तो कई पेज भर जायेंगे। यार ऐसे में एक चीज मै नही समझ पाया कि आख़िर चुनाओं में ये सब मुद्दे क्यों नही होते है? हर बार एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश, हर बार भावनाओं को भड़काना, वही जात-पात, वही धर्मं और समुदाय की बात करना । अरे भाई देश की बात और देश की जनता की बात करो, इंसानियत की बात करो , लोगों को तोड़ने की जगह उनको जोड़ने की बात करो। यार विकास की बात करो, क्योंकि जब तक लोगों का विकास नही होगा, लोग सशक्त नही होंगे,तब तक न तो देश आगे बढेगा और न ही देश की जनता। आज हर कोई युवाओं की बात करता है लेकिन इस देश में युवाओं के लिए कोई कोई नीति नही है, बच्चे किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी धरोहर होते है लेकिन इस देश के बच्चों की हालत किसी से छुपी नही है । जहाँ भूख की वजह से जाने जाती हो ,जहाँ माँ-बाप अपने बच्चों को इसलिए मार देते हो की उनके पास खिलाने के लिए खाना नही होता है ,उस लोकतान्त्रिक देश में चुनाव इन मुद्दों पे नही होते है। भारतीय राजनीति में जो गिरावट आई है उसके लिए किसी और को दोष देने से पहले हमें अपने योगदान के बारे में भी सोचना होगा। ठीक है की ५ साल में हमें एक बार ही ये मौका मिलता है की हम सही सरकार का चुनाव कर सके लेकिन हम इसके प्रति कितने गंभीर है ये भी हम जानते है। सिर्फ़ कमरों में बैठकर कोसने से कुछ नही होने वाला, परिवर्तन लाने के लिए पहले ख़ुद को बदलना होगा। अगर अभी भी न समझेंगे तो फिर बहुत देर हो जायेगी और आगे आने वाली पीढियां हमें माफ़ नही कर पाएँगी। यही वक्त है कुछ करने का क्योंकि जब भी उठ खड़े हो तो वही सही वक्त होता है वरना सही वक्त का इन्तजार ही करते रह जायेंगे..............................फिर मिलते है............................

Saturday, November 29, 2008

अब बस करो........................

आतंक का जो नंगा नाच मुंबई में हुआ ,उससे एक बात साफ़ हो गई की हमारे देश में आतंरिक सुरक्षा में बहुत बड़ी कमी है। जिस तरह से ६० घंटे तक आतंकियों ने पूरे मुंबई शहर को बन्दूक की नोक पर रखा उससे उनके नापाक इरादों का पता चलता है । एक बात जो गौर करने लायक है की मनमोहन सिंह सरकार में आतंकी हमले ज्यादा हो रहे है,इस पर विचार करना होगा। मई किसी को दोष नही दे रहा हु लेकिन एक बात तो सच है की हमारे देश में सब ठीक नही चल रहा है। संसद पर हमला हुआ, कई सुरक्षाकर्मी शहीद हुए ,लेकिन दोषियों को आज तक सजा नही हो पाई। देश के कर्णधारो को ये समझना होगा की उनकी आपसी खीचतान से जनता और सैनिकों एवं पुलिस का मनोबल टूटता है। जब भी कोई घटना होती है ,सारे नेता बयानदेने लगते है ,सरकार रहत पैकेज देने लगती है, राजनितिक दल इसे मुद्दा बनने लगते है, कुल मिलकर फिर शुरू होता है गन्दी राजनीती का खेल जो इस देश का और हमारा-आपका दुर्भाग्य बन जाता है। कम से कम राष्ट्र हित के मुद्दों पर राजनीती तो मत करो यार,जब देश हे बर्बाद हो जाएगा तो तुम लोग क्या करोगे, अपनी घटिया राजनीति का खेल किसके साथ खेलोगे ? aबी देश को ऐसे नेतृत्व की जरुरत है जो देश हित को सर्वोपरि रखे, जो देश की जनता के लिए काम करे, जो देश और नागरिको की भलाई के लिए कठोर कदम उठाये, तभी इस देश का कल्याण हो सकता है। अब सिर्फ़ सत्ता की राजनीति करने वालों को समझाना होगा की अपने हितों के चक्कर में वो इस देश और यहाँ की जनता को धोखा दे रहे है । अगर आतंकवाद से लड़ना है तो कठोर कानून बनाने होंगे, न्याय ब्यस्था में सुधार करना होगा,और दोषियों को जल्दी से जल्दी सजा देनी होगी। हो सकता है की इसका विरोध हो लेकिन जनहित के लिए त्याग तो करना ही होगा वरना निर्दोषों की जाने जाती रहेंगी, सड़कें लाल होती रहेंगी। माँओं की कोख सूनी होगी और न जाने कितने सुहाग मिटेंगे....................................................साथियों अब भी देर नही हुई है ,जैसे अंधेरे को मिटाने के लिए एक दिया काफ़ी है उसी तरह एक सार्थक प्रयास से इन दुश्मनों को खत्म किया जा सकता है.....जय हिंद-जय भारत ........अगर कुछ नागवार लगे तो माफ़ी चाहूंगा ..................................

Thursday, November 20, 2008

चुनाव में मुद्दों का अभाव

इस समय देश में छह राज्यों में विधान सभा के चुनाव हो रहे है और सब जगह एक बात सामान्य है की हर जगह आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति चरम पर है। किसी भी राजनितिक दल के पास कोई मुद्दा नही है ,सभी एक- दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए है । अभी हाल ही में अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव हुए है और जिस तरह के स्वस्थ माहौल में वहा पर चुनाव हुए है क्या हम उस तरह के माहौल में चुनाव नही कर सकते है । देश में गरीबी, भुखमरी , बेरोजगारी , अशिक्षा जैसे न जाने कितने गंभीर मुद्दे है लेकिन कोई भी दल इनको मुद्दा नहीं बना रहा है, आख़िर क्यों, ये समझ से परे है। आज साठ साल हो गया आजाद हुए लेकिन हम मानसिक रूप से अभी भी आजाद नही हो पाए है । जिस देश में ८० करोड़ से ज्यादा लोग सिर्फ़ २० रुपया प्रतिदिन कमाते हो उस देश की तस्वीर कितनी भयावह होगी ,इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। वाकई इस देश और यहाँ के नागरिको की तारीफ करनी होगी क्योंकि उनकी तरफ़ से आज तक कोई बड़ा आन्दोलन नही हुआ। बच्चो में कुपोषण एक गंभीर समस्या है लेकिन इसके लिए सरकारी प्रयास नाकाफी ही सिद्ध हुए है। इस मामले में हम कुछ अफ्रीकी देशों से भी बदतर स्थिती में है। भारत में जिस तरह से अरबपतियों की संख्या बढ़ी है उसके मुकाबले गरीबों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। समझने वाली बात है की तीन चौथाई संस्सधानो का प्रयोग एक चौथाई लोग कर रहे है और फिर सरकार भी इन्ही के बारे में सोचती है। हाँ तो बात चुनाओं की हो रही थी ,तो मेरा बस इतना कहना है की जनता और ब्यापक हित को चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए और इस घटिया राजनीति का परित्याग जितनी जल्दी हो कर देना चाहिए। क्योंकि अगर देश की जनता ही सुखी नही है तो फिर कैसा लोकतंत्र और कैसी राजनीति । जय हो नेताओं की......जय राम जी की .फिर मिलते है.........................

Friday, November 7, 2008

अमेरिका की जीत.......................

आख़िरकार ओबामा ने अमेरिका में एक नया इतिहास रच ही दिया लेकिन मीडिया ने इसको जिस तरह से पेश किया वह अपने आपमें बहुत दुखद है। यह सही है की अमेरिका के २२५ वर्षो के इतिहास में बराक हुसैन ओबामा पहले अश्वेत ब्यक्ति है जो राष्ट्रपति बने है ,लेकिन वो सिर्फ़ अश्वेत होने की वजह से नही जीते है बल्कि इसलिए जीते है क्योंकि वे एक बेहतर तरीके से लोगो को अपनी बात समझाने में कामयाब रहे। ओबामा ने बदलाव की बात कही जो वहा के लोगो को छू गई। हलाँकि ओबामा को आतंकवादी तक कहा गया लेकिन obama ne इसकी परवाह न करते हुए अपना काम किया और अंततः जीत हासिल की। मुझे याद है की अपनी हार स्वीकार करते समय मैक्कैन ने कहा की भले ही मै हार गया हूँ लेकिन ओबामा अब हम लोगों के राष्ट्रपति है । जाहिर है की सिर्फ़ अश्वेत लोगों के वोट से वो नही जीते बल्कि श्वेत लोगों ने भी वोट किया है। उनकी सभाओं में भीड़ और लोगों को रोते हुए देखना एक आश्चर्य से कम न था। आखिरकार साठ के दशक में अमेरिका के गाँधी मार्टिन luthar किंग जूनियर का सपना पूरा हो ही गया। क्या भारत में हम इस तरह की राजनीति और राजनेताओं की कल्पना भी कर सकते है। मुझे तो असंभव लगता है लेकिन अगर आपको उम्मीद नज़र आती है तो मै भी आपके साथ हो लेता हूँ...................

Monday, May 19, 2008

आख़िर कब तक

पिछले कुछ समय से देश मे आतंकवादी घटनाये जिस तेजी से घट रही है उससे आतंकवादियों के दुस्साह्श का पता चलता है। निश्चित रूप से ऐसी घटनाओ को एकदम से रोका नही जा सकता है ,लेकिन उचित कानून बनाकर इस को कम किया जा सकता है। ऐसी घटनाओ का मकसद देश मे साम्प्रदायिक दंगे कराना हो सकता है क्योंकि ज्यादातर बम विस्फोट की घटनाएँ धार्मिक स्थलों के आस-पास ही हुई है। इस तरह की गिरी हुई हरकतें मानवता के ख़िलाफ़ होती है और ऐसे लोगो का कोई धर्म -इमान नही होता है। इन्हें सिर्फ़ मानवता के दुश्मन के रूप मे ही देखना चाहिए। जब भी ऐसी घटनाएँ होती है तो राज्य और केन्द्र एक दूसरे पर आरोप लगाने लगते है। देश की आत्मा यानि संसद से लेकर राज्यों की राजधानियों तक का जिगर जख्मी है ,अब ये नासूर बने इससे पहले सरकार को कुछ नए कानून बनाने के साथ देश की न्याय ब्यवस्था को भी बदलना होगा ताकि ऐसी घटनाओ को रोका जा सके। अगर ऐसा नही हुआ तो जिगर भी जख्मी होगा और कंधार भी होगा।

Wednesday, May 14, 2008

सस्ता हुआ खून

पिछले दिनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खून से तौला गया। लड्डुओं और सिक्कों से तौलने का चलन तो भारतीय राजनीति मे काफ़ी पहले से था लेकिन खून से तौलने का रिवाज शायद अभी नया आया है। खैर जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है और जरूरी चींजे लोगों से दूर होती जा रही है ऐसे मे खून ही सबसे सस्ता है शायद इसीलिए ऐसा किया जा रहा है। हां तो बात खून की हो रही है , ये वही खून है जिसे कभी सरहदों पर सेना के जवान देश की सीमाओं की रक्षा करते वक्त बहा देते है तो कभी लोकल ट्रेन मे यात्रा कर रहे लोगों को आतंकवादी घटनाओं मे मार कर बहाया जाता है,कभी बाबरी मस्जिद काण्ड खून बहने का कारण बनता है तो कभी गोधरा मे खेली जाती है खून की होली। बात कुछ भी हो लेकिन यह कितना अजीब लगता है की किसी ब्यक्ति को खून से तौला जा रहा है और वह ब्यक्ति कैमरों के लेंसों के सामने हँसते हुए तराजू के पलडे मे कभी ऊपर तो कभी नीचे हो रहा है। बहरहाल आज भारतीय राजनीति मे चाटुकारिता हावी है और हो सकता है कल नेताओं को खुस करने के लिए कोई नया तरीका अपना लिया जाए। अरे भाई वैशाविकरण और उदारीकरण का दौर है तो राजनीति मे भी तो परिवर्तन होंगे ही। जय हो राजनेताओं की...................................

Tuesday, April 15, 2008

बेतुका बयान

जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोग कितने जिम्मेदार है ,एक बार फ़िर ये केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कमलनाथ के उस बयान से साबित हो गया है जिसमे महंगाई के लिए गरीबो को दोषी माना गया है। इनका मानना है की गरीब आजकल ज्यादा खाने लगे है इसलिए महंगाई बढ़ी है । ये तो वही बात हुई की उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। सरकार गरीबो के लिए कुछ करेगी भी नही और यदि वो किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटाले तो वो भी आपको गवारा नही। माननीय मंत्री जी कॉलेज मे आपको भी पढाया गया होगा की महंगाई बढ़ने के क्या-क्या कारण होते है । बेहतर होगा की इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान न दे और इस समस्या के समाधान के लिए कुछ ठोस प्रयत्न करे ताकि इस संकट से मुक्ति मिल सके।

सरकारी धन की बर्बादी

एक बार फ़िर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने सारी परम्पराओं को दरकिनार करते हुए अपनी ही मूर्ति का अनावरण कर डाला। और ये काम वो अपने पिछले कार्यकाल मे भी कर चुकी है जिस पर उस वक्त काफ़ी शोर-शराबा हुआ था। अब इससे दलितों का कितना भला होगा ये तो दलित भी समझ रहे है और मायावती भी। बात ये है की आख़िर सरकारी धन का ऐसा दुरूपयोग क्यों किया जा रहा है। क्या इस राज्य की सारी समस्याएँ खत्म हो गई है जो मायावती सिर्फ़ पार्को और मूर्तियों के ऊपर ध्यान दे रही है। जबकि वास्तव मे ऐसा नही है। हजारो करोड रुपया बरबाद हो रहा है, क्या उन्हें बुंदेलखंड या बेरोजगारी और अन्य समस्याएँ नही पता है। दरअसल जब तक इन पदों पर बैठे लोगो की जिम्मेदारी तय नही की जायेगी तब तक ये लोग ऐसे ही सरकारी धन को लूटते रहेंगे .

Sunday, March 9, 2008

विकास की कीमत

आज जबकि सारा जोर विकास पर दिया जा रहा है और ये माना जा रहा है की यदि देश की इकोनोमी का विकास होगा तो देश की जनता का भी विकास होगा। लेकिन विकास का जो दूसरा पहलू है वह है विस्थापन। विकास का विरोध करने वाले भी ये मानते है की विकास के लिए विस्थापन जरूरी है। लेकिन विस्थापन हमेशा गरीब ,पिछड़े और कमजोर लोगो का ही क्यों होता है? आख़िर क्यों ऐसे लोग ही विकास की कीमत चुकाते है जिन्हें इससे कुछ हासिल नही होता है उल्टे वो और हासिये पर चले जाते है। अगर उन्हें कुछ मिलता है तो वह अपनी जगह से हटने की पीड़ा। दरअसल भारत सहित दुनिया के कुछ देशो मे विकास की जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है , वह दमन की नीति पर आधारित है। इसमे कुछ ख़ास लोगो को फायदा पहुचाने की कोशिश होती है। अगर विकास जनता के लिए किया जाना है तो उसमे जनता की भागीदारी होनी चाहिए । विकास जनता के लिए होना चाहिए न की जनता की कीमत पर.

राज की गुंडागर्दी

आज महाराष्ट्र मे राज ठाकरे जो कर रहे है वह सिर्फ़ गन्दी राजनीति है। अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए लोगों को आपस मे लड़ाने का काम ऐसे लोग ही करते है। समझ मे नही आता की जब विदर्भ मे इतने किसान आत्महत्या कर रहे थे , उस वक्त ये कहा थे? लगता है की इनको देश के संविधान की जानकारी नही है जो इस देश के नागरिको को को देश के अंदर कही भी रहने ,कोई भी रोजगार करने और कही भी निवास करने की आजादी देता है।अपने इस तरह के कार्यो से वह न सिर्फ़ देश के संविधान को चुनौती दे रहे है बल्कि गृहयुद्ध उत्त्पन्न करने की कोशिश कर रहे है। आख़िर कब तक लोगों को आपस मे लड़ाकर राजनीति का गन्दा खेल खेला जाता रहेगा?
आज हमे किसी वर्ग की अलग पहचान तय करने से पहले एक राष्ट्र की पहचान को तय करना होगा। समझ नही आता की धर्म ,जाति और प्रांत के आधार पर अलग -अलग पहचानो की जरुरत ही क्यो पड़ी। हिन्दी है हम,वतन है हिन्दोस्तान हमारा , काफ़ी नही था?

Saturday, March 1, 2008

गैर जिम्मेदार जन प्रतिनिधि

आज हमारे जन प्रतिनिधि क्या कर रहे है ये बात किसी से छुपी नही है। अगर कुछ पीछे की घटनाओ को याद करे तो हम पाएंगे की चाहे वो संसद हो या राज्यों की विधानसभाये ,कमोबेश हर सदन मे ऐसी घटनाएँ घट चुकी है जिनसे सदन की गरिमा का हनन हुआ है। क्या हमारे जनप्रतिनिधि ये नही जानते की हमारा देश किन समस्याओं से गुजर रहा है । अगर सिर्फ़ सांसदों की बात करे तो पाँच वर्ष मे इनके ऊपर भारत सरकार का लगभग ९०० करोर रूपया खर्च होता है। अगर संसद की बात करे तो २६,००० रूपया प्रति मिनट का खर्च आता है संसद के चलने मे ,लेकिन हमारे देश के सम्मानित जनप्रतिनिधियों को इससे कोई फर्क नही पड़ता है । जिस देश मे इतनी समस्याएँ हो वहा पर सदन के कार्यों को बाधित करना आख़िर कौन सी समझदारी है। जाहिर है उनके ऐसे कार्यो से जरूरी मुद्दों पर चर्चा नही हो पाती है और लोकहित के कार्य प्रभावित होते है। लेकिन जब इनको अपना वेतन बढ़वाना होता है तो ये सारे लोग एकमत नजर आते है।
इसके लिए राजनीतिक दल भी कम दोषी नही है । आज उनके अन्दर लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी होती जा रही है। हर दल की अपनी एक अलग विचारधारा होती है चाहे वो नीतियों को लेकर हो या कार्यक्रमों को लेकिन फिर भी उनमे आपस मे संवाद होता है जिसके आधार पर सहमति या असहमति बनती है। जबकि वर्तमान मे उनके अन्दर संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न हो रही है और सदस्यों के अंदर सुनने का धैर्य समाप्त हो रहा है जो की अच्छा लक्षण नही है।

Friday, February 29, 2008

जल प्रदूषण

सरकार एक तरफ़ तो विकास की बात कर रही है और और वही ख़ुद विनाश के वो सारे काम कर रही है जो धीरे _धीरे हमे विनाश की तरफ़ ले जा रहे है। माना की विकास की कीमत चुकानी पड़ती है लेकिन सिर्फ़ विनाश की कीमत पर विकास कहाँ की समझदारी है। अगर नदियों की बात करे तो आज हमारे देश की सारी नदिया प्रदूषित हो चुकी है और जिनकी सफ़ाई के नाम पर हजारो करोड़ रूपया नेताओ और अधिकारियों की भेट चढ़ चुका है , लेकिन नदिया और गन्दी हो गई । गंगा जिसे जीवनदायिनी माना जाता है उसका तो हाल सबसे बुरा है। लेकिन इसके लिए सिर्फ़ सरकार को दोष देना ग़लत होगा ,आख़िर एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है। आखिरकार ये हमारा भी तो देश है।