Thursday, August 13, 2009

नत कर दो मस्तक मेरा..................

नत करदो मस्तक मेरा अपनी चरण-धूल में,

अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।

करने स्वयं को गौरव-दान करता केवल निज अपमान,

बार बार चक्कर खा-खाकर मरता हूँ पल-पल में।

अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।

Wednesday, August 12, 2009

कुछ नज्में.............


नींद इस सोच से टूटी अक्सर

किस तरह कटती हैं रातें उसकी - परवीन शाकिर
ऐसे मौसम भी गुजारे हमने

सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी - परवीन शाकिर
आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते

अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते - अकबर इलाहाबादी
अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जायेंगे

तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पायेंगे - अहमद हमदानी


ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू सँवारे

मेरे हाथ से संवरते, तो कुछ और बात होती- आगा हश्र
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी

कुछ मुझे भी खराब होना था - मजाज लखनवी
न जाने क्या है उस की बेबाक आंखों में

वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा लगे- कैसर उल जाफरी
किसी बेवफा की खातिर ये जुनूं फराज कब तलक

जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ- अहमद फ़राज


काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें

इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें- अख्तर शीरानी
इस से पहले कि बेवफा हो जायें

क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें- अहमद फराज
इस पुरानी बेवफा दुनिया का रोना कब तलक

आइए मिलजुल के इक दुनिया नई पैदा करें- नजीर बनारसी
हम अक्सर दोस्तों की बेवफाई सह तो लेते हैं

मगर हम जानते हैं दिल हमारे टूट जाते हैं- रोशन नंदा

अर्ज है................

ये शबे फिराक ये बेबसी, हैं कदम-कदम पे उदासियाँ,मेरा साथ कोई न दे सका, मेरी हसरतें हैं धुआं-धुआं - हसन रिजवी
हमको तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया ,रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया - सैफुद्दीन सैफ
हर शम्आ बुझी रफ्ता रफ्ता ,हर ख्वाब लुटा धीरे - धीरे ,शीशा न सही पत्थर भी न था, दिल टूट गया धीरे - धीरे - कैसर उल जाफरी
ए मौत, उन्हें भुलाए जमाने गुजर गए, आजा कि जहर खाए जमाने गुजर गए - खुमार बाराबंकवी


एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम ,कैसे भूलूं किसी का वो पहला सलाम - कैफी आजमी
मैं चाहता भी यही था वो बेवफा निकले ,उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले - वसीम बरेलवी
अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं ,कैसे तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे - वसीम बरेलवी
शबाब आया किसी बुत पर फिदा होने का वक्त आया ,मेरी दुनिया में बंदे के खुदा होने का वक्त आया - हरीचंद अख्तर


साफ जाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं ,मुंह से कहते हुये ये बात मगर डरते हैं - अख्तर अंसारी


सोचा था कि तुम दूसरों जैसे नहीं होगे ,तुमने भी वही काम मेरी जान किया है - अफजल फिरदौस

एक टूटी हुई जंजीर की फरियाद हैं हम ,और दुनिया ये समझती है कि आजाद हैं हम - मेराज फैजाबादी
देख लो आज हमको जी भर ,के कोई आता नहीं है फिर मर के - मिर्जा शौक


किस-किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया, गैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया - शहरयार
मैनोशी के आदाब से आगाह नहीं है तू, जिस तरह कहे साकी-ए-मैखाना पिए जा - अख्तर शीरानी
मैं नजर से पी रहा हूं, ये समां बदल न जाए ,न झुकाओ तुम निगाहें, कही रात ढल न जाए- अनवर मिर्जापुरी
पहलू से दिल को लेके वो कहते हैं नाज ,से क्या आएं घर में आप ही जब मेहरबां न हों - मौलाना मुहम्मद अली जौहर


तुम्हारी बेखुदी ने लाज रख ली वादाखाने की ,तुम आंखों से पिला देते तो पैमाने कहां जाते - शकील बदायूंनी
कटी रात सारी मेरी मैकदे में,खुदा याद आया सवेरे-सवेरे - सैयद राही
ऐसे भी हैं दुनिया में जिन्हें गम नहीं होता, एक हम हैं हमारा गम कभी कम नहीं होता - रियाज खैराबादी
मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे ,मेरे साकी तू रहे आबाद मैखाना रहे - रियाज खैराबाडी

अर्ज किया है................


पहले तो अपने दिल की रजा जान जाइए ,फिर जो निगाह-ए-यार कहे, मान जाइए- कतील शिफाई
कैसे कह दूं कि मुलाकात नहीं होती है ,रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती है - शकील बदायूंनी
ये आरजू ही रही कोई आरजू करते ,खुद अपनी आग में जलते जिगर लहू करते - हिमायत अली शायर
हम रातों को उठ-उठ के जिनके लिए रोते ,हैं वो गैर की बाहों में आराम से सोते हैं - हसरत जयपुरी
इस तरह सताया है, परेशान किया है,गोया कि मुहब्बत नहीं एहसान किया है - अफजल फिरदौस
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं ,बाजार में निकला हूं खरीदार नहीं हूं - अकबर इलाहाबादी
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी ,कुछ मुझे भी खराब होना था - मजाज
अपने ख्वाबों में तुझे जिसने भी देखा होगा ,आंख खुलते ही तुझे ढूंढ़ने निकला होगा - अब्बास दाना

अर्ज किया है................



सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं, कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं - वजीर आगा
उम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नहीं, हर शब-ए-गम की सहर हो ये जरूरी तो नहीं - खामोश देहलवी
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझ में, और फिर मानना पड़ता है कि खुदा है मुझ में - कृष्णबिहारी नूर
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिजरां ,छोड़कर चल बसा वो आज सब हस्ती का सामां छोड़कर - इब्राहीम जौक

Monday, August 10, 2009

जनता बेहाल.सरकार खुशहाल...........

अब उत्तर प्रदेश देश का सबसे खुशहालप्रदेश बनने की राह पे अग्रसर है । जी हाँ , हो सकता है की आप मेरी बात से सहमत न हो लेकिन हमारे उत्तर प्रदेश की योग्य एवं दूरदर्शी मुख्यमंत्री सुश्री मायावती का यही कहना है। दरअसल मै बात कर रहा हूँ अम्बेडकर पार्क और उन तमाम परियोज्नावों की जो प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में है। मायावती जी का कहना है की इससे इतना राजस्व आएगा की प्रदेश एवं जनता का विकास हो पायेगा।यानी ये पर्यटन का केन्द्र बनेगा। जबकि बाकी लोग मायावती जी का विरोध कर रहे है, आप ही बताओं क्या ये ठीक है। और तो नही पता लेकिन जनता के पैसों का इतना दुरूपयोग मैंने नही देखा। शर्म आती है ये देखकर की सार्वजनिक पद पे बैठा एक ब्यक्ति जनता के पैसों से हर जगह अपनी मूर्तियाँ लगवा रहा है। जहाँ सूखा, बेरोजगारी,भुखमरी,गरीबी,अशिक्षा जैसी विकराल समस्याएँ मौजूद हो , वहां पे अपने हितों की इस तरह से पूर्ति न सिर्फ़ निंदनीय है बल्कि एक अपराध है, एक धोखा है इस राज्य की जनता के साथ जिसने लोकतंत्र में विश्वाश किया और इए सरकार को चुना। पता नही वो अमर होना चाहती है या फिर कुछ और , लेकिन शहर को पत्थरों का जंगल तो मायावती जी ने बना ही दिया है। कितने हरे पेड़ काट दिए गए और न जाने अभी कितने और कटेंगे कोई नही जानता। अधिकारीयों की तो लाटरी लग गई है, खूब माल मिल रहा है। उधर मायावती जी के पिता भी आय कर के मामले में परेशान है, अजब हालत है इस देश की भी , कुछ लोगों के पास आय का साधन ही नही है और कुछ लोगों के पास इतना ज्यादा है की टैक्स देना पड़ रहा है।

बात-बात में .........................

कुल मिलाकर संसद का ये सत्र कुछ मायनो में ठीक-ठाक ही रहा। कम से कम मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का विधेयक आ पाया। सरकार बनने के समय जो १०० दिनों का एजेंडा लाया गया था , उ़समे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ही कुछ काम कर पाया जबकि बाकी मंत्रालयों का हाल बुरा ही रहा। सबसे ज्यादा शोर-शराबा देश के महान नेताओं की सुरक्षा के मुद्दे पे रहा। भाई इनकी जान को खतरा भी तो है बेचारे जनता और देश के लिए इतना जोखिम जो उठा रहे है।ये अलग बात है की जनता की सुरक्षा से इनको कोई सरोकार नही है, क्योंकि उनके लिए भगवानतो है ही। इधर महंगाई और सूखे ने लोगों को बेहाल कर रखा है जबकि हमारे माननीय वित्त मंत्री और कृषि मंत्री को इसकी ख़बर ही नही, कह रहे है की ये मौसमी महंगाई है। इस बार उत्तर प्रदेश में फिर ऐतिहासिक घटना घटी, दो महिलाओं में संघर्ष हुआ, एक ने कुछ कहा तो दूसरी तरफ़ से जवाब में उनका घर ही जला दिया गया। ये आज की राजनीति है , अब देखना ये है की इसके आगे क्या होता है। खैर एक बात जो सत्य है की छोटे दलों ने राजनीति को गन्दा ही किया है, सिर्फ़ अपने छोटे स्वार्थों के लिए। अब वक्त आ गया है की सिर्फ़ राष्ट्रीय दल ही सरकार बनाये। माना की राष्ट्रीय दलों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नही रहा है लेकिन वो फिर भी इन छोटे दलों से बेहतर ही रहेंगे।

Friday, May 22, 2009

बदहाल गाँधी न्यास भवन .........

अभी कुछ दिनों से हिन्दी के एक प्रमुख अख़बार में एक विदेशी कंपनी जो की अन्तःवस्त्र का निर्माण करती है, उसका विज्ञापन देखने को मिला। दरअसल इस कंपनी की सेल लगी थी जिसमे कुछ छूट दी जा रही थी। असल बात तो यह है की यह सेल भोपाल के गाँधी न्यास भवन में लगायी गई थी। यह कोई पहली बार नही था , इससे पहले भी ऐसे कृत्य किए जाते रहे है। एक तरफ़ तो बापू की लिखी और चर्चित पुस्तक हिंद स्वराज का सौवा वर्ष चल रहा है वही दूसरी तरफ़ बापू के नाम से बनी इस ईमारत में ये सब हो रहा है। अरे भाई अगर सेल लगानी है तो किताबों की लगाओ , साहित्य की लगाओ। कम से कम बापू के नाम की तो लाज रखो। वैसे सरकार के पास बहुत पैसा है लेकिन इन सब संस्थानों की बेहतरी के लिए वो कुछ नही करना चाहती है। गाँधी जी हर हाथ में काम की बात करते थे, खादी ख़ुद बनाते और पहनते थे लेकिन आज उस खादी के साथ क्या हो रहा है ये सबको पता है। जाहिर सी बात है की इसके लिए यहाँ की सरकार ही दोषी है। आश्चर्यतो तब होता है जब कोई भी इसके ख़िलाफ़ आवाज नही उठाता है न तो जन-मानस और न ही विज्ञापन देने वाले ये अखबार। यार अब ऐसा भी क्या की पैसा कमाने के लिए सारे मूल्यों को ही ध्वस्त कर दिया जाए। कम से कम इतना तो रखो की हमारी आने वाली पीढियां बापू को महात्मा गाँधी के तौर पे ही जाने...................

Friday, April 17, 2009

लाल गलियारा फिर हुआ लाल........................

१५ वी लोकसभा के लिए संपन्न हुए पहले चरण के मतदान में इस देश के जिन नागरिकों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया , वे सभी प्रशंसा के पात्र है। और सही मायने में वे ही इस देश के सच्चे नागरिक है। कोई भी लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब उसमे उस देश के नागरिकों की सहभागिता हो। क्योंकि पहले चरण के चुनाओं में उन लोगों ने भी मतदान किया है जो लोकतंत्र का मतलब तक नही जानते है, जिन्हें पता नही की विकास क्या होता है, जिन्होंने सड़के नही देखी है , लेकिन अपना वोट देकर उन्होंने भारत में अपना विश्वास ब्यक्त किया है। सबसे चिंता का विषय है लाल गलियारा। झारखण्ड,बिहार,छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में चुनाओं को बाधित करने की कोशिश की गई। अभी हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भी स्वीकार किया की आज भारत को सबसे ज्यादा खतरा नक्सलियों से है। आज देश की आतंरिक सुरक्षा खतरें में है। नक्सलियों का प्रभाव बढ़ा है और वे ज्यादा ताक़तवर हुए है। इस चुनाव में भी उन्होंने हिंसा की और कई लोगों की जान ली। एक बात जो समझ नही आ रही है की राज्यों की सरकारें खासकर नक्सल प्रभावित राज्यों की, ऐसा कोई कदम क्यों नही उठा रही है जिससे इस पर लगाम लगाई जा सके। केन्द्र की सरकार का लुंजपुंज रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार है। इस समस्या को लेकर कई बैठकें हो चुकी है लेकिन अंजाम सिफर ही रहा है। दरअसल समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए ये जरूरी है की इसके कारणों को खोजा जाए और उन कारणों को दूर किया जाए। अक्सर देखने में आता है की जो भी जन प्रतिनिधि इन क्षेत्रों से चुनकर संसद या विधान सभाओं में जाते है वे भी बाद में उन लोगों का शोषण करते है। जो सबसे बड़ी दिक्कत है वो हमारी ब्यवस्था में है। इस ब्यवस्था में गरीब ,गरीब हो रहा है और अमीर, अमीर बन रहा है। देखा जाए तो ये समस्या वही है जहाँ पे विकास नही है, जहाँ के लोगों का जीवन नारकीय है, जिनके पास कोई अवसर नही है। उनकी बात सुनने वाला कोई नही है। आज सरकारों का सारा ध्यान शहरों के विकास पे केंद्रित है, ग्रामीण और अविकसित इलाकों के लिए सरकारें कुछ करना ही नही चाहती है। जहा पे असंतोष होगा वहाँ विद्रोह होना तय है। पेट है तो भूख तो लगेगी ही , नही मिलेगा तो लोग छीनेंगे । जब उनकी बात नही सुनी जायेगी तो वे बन्दूक का सहारा लेंगे ही। हालाँकि ये सच है की बन्दूक समस्या का समाधान नही है लेकिन जिनके पास खोने के लिए कुछ न हो वे पाने की कोशिश तो करेंगे ही। आज लगभग १२ राज्य नक्सलवाद से लड़ रहे है। इस चुनाव में भी कई मतदानकर्मी और सुरक्षाकर्मी मारे गए, उड़ीसा में एक उमीदवार की हत्या तक कर दी गई। यदि अब भी सरकार इसके खात्मे का गंभीर प्रयास नही कर पाई तो निश्चित रूप से देश के सामने एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा। बेहतर होगा की समस्या का समाधान किया जाए अन्यथा ये खत्म होने की अपेक्षा और विकराल हो जायेगी।

गौर फरमाएं.....................

पड़ोसी का बेटा लायक बन गया, डकैती में था, विधायक बन गया। हाँ, पचासों साल से ये वतन आज़ाद है पर वतन ए रहबरों की लूट से बर्बाद है।मुझे बर्बादी का कोई ग़म नहीं, ग़म है ये रहबर अभी नाबाद है।

Wednesday, April 15, 2009

घोषणा पत्र - ख्वाब या हकीकत

अब जबकि लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान कल यानि १६ अप्रैल को होने जा रहा है ऐसे में राजनितिक दलों के चुनावी घोषणा पत्रों का थोड़ा जिक्र कर ही लेते हैं। देश के दो शीर्ष राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणा पत्रों में खूब लुभावने वादे किए है। कोई गाँव को इन्टरनेट से जोड़ने की बात कर रहा है तो कोई सभी नागरिकों के लिए स्मार्ट कार्ड नामक पहचान पत्र की बात कह रहा है।कोई १०,००० रुपये में लैपटॉप दिला रहा है तो कोई निजी क्षेत्र में आरक्षण और सस्ते में चावल दिलाने की बात कर रहा है। कुल मिलकर हर तरफ़ वादों की धूम मची है। अब वादा पूरा होगा या नही ये तो भविष्य ही तय करेगा हालाँकि इतिहास तो ख़राब ही रहा है आजतक। वैसे भी सभी जानते है की वादे पूरे करने के लिए नही किए जाते है। कुछ पार्टियाँ तो बहुत समझदार है, उंहोने कोई वादा ही नही किया, जो भी करना होगा परिणामों के बाद करेंगे, ये कुछ ब्यवहारिक बात हुई। एक बात जो सबमे है की किसान और कृषि पर किसी का ध्यान नही है। वैसे भी किसी भी दल को सरकार बनाने लायक बहुमत तो मिलने से रहा, ऐसे में घोषणा पत्र का क्या महत्व रह जाता है। अब तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा की खिचडी बनेगी या फिर मिक्स वेज। मेरे ख्याल से इसमे ये लिख देना चाहिए की '' समय और जरुरत के हिसाब से इसमे परिवर्तन किया जा सकता है। '' सच कहा जाए तो ये एक गंभीर विषय है और इस पर सभी को खासकर राजनीतिज्ञों को विचार करना चाहिए । जनता आपको चुनती है और आप जनता को धोखा देते है, ये निश्चित रूप से निंदनीय है। इधर चुनाव आयोग भी अपना सारा हिसाब-किताब चुकता कर रहा है। खोज-खोज के नेताओं के ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज करा रहा है। ये अलग बात है की किसी भी नेता को आजतक ऐसे मामलों में सजा नही मिली है। बच्चे के जब दांत निकलतें है तो वो खूब काटता है ऐसा ही कुछ चुनाव आयोग कर रहा है। आजकल हर न्यूज़ चैनल सरकार बनवाने में लगा है। कोई राजग की बनवा रहा है तो कोई यू पी ऐ की। सब ''खुल्ला खेल फर्रुखाबादी '' खेलने में लगे है। खैर और कुछ नही तो कम से कम पुराने घोषणा पत्रों के ऊपर नया वाला रख दिया जाएगा, जरुरत हुई तो कभी उलट-पुलट लिया जाएगा नही तो आराम से धूल तो अवश्य खायेगा। चलिए कुछ अपने खाने की चिंता कर ले नही तो वादे के चक्कर में कुछ न मिलेगा। किसी शायर ने दुरुस्त ही फ़रमाया है ................
''ये न थी हमारी किस्मत की विसाले यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।''

Monday, April 13, 2009

फिर वही सब............. आख़िर कब तक

एक तरफ़ तो हम लोग भारत को २१ वी सदी में ले जाने की बात कर रहे है वही दूसरी तरफ़ हमारे देश के शीर्ष राजनीतिक दल लोकसभा चुनाओं में देश में नकारात्मक माहौल बनाने में लगे हुए है। किसी पार्टी की तरफ़ से कोई भी राजनीतिज्ञ कुछ ऐसा नही बोल रहा है जिसका कुछ सार्थक अर्थ निकाला जा सके। हर पार्टी एक - दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर रही है जिससे इस देश की राजनीतिक परिपक्वता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बी जे पी कांग्रेस को १२५ साल बूढा बता रही है तो कांग्रेस बी जे पी को अरब सागर में फेंकने की बात कह रही है। ये तो कुछ बानगी भर है जो हिंदुस्तान की दो शीर्ष पार्टियां ऐसे मौके पे कर रही जब देश में १५ वी लोकसभा के चुनाव हो रहे है। सपा जैसे दल भला कैसे पीछे रहते तो मुलायम सिंह कंप्यूटर और अंग्रेजी स्कूलों के ही पीछे पड़ गए। सुना है की नेता बनने से पहले वे एक शिक्षक थे , उसके बाद भी ऐसी बात कर रहे है तो फिर अब भगवान ही बचाए। उधर दक्षिण की एक पार्टी लिट्टे के समर्थन में बोल रही है। कुल मिलाकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर बखूबी जारी है। अब दक्षिण से शुरू हुआ सस्ते में चावल देने का प्रचलन छत्तीसगढ़ तक पहुच गया है। चावल २ रुपये प्रति किलो दिया जा रहा है या नही , ये एक विषय हो सकता है। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ से किसानो की आत्महत्या की खबरें आ रही थी। सरकार चावल की बात तो कर रही है लेकिन चावल उगाने वाले किसानो के बारे में बात करने का समय उसके पास नही है। अब तक न जाने कितने किसानो की मौत हो चुकी है और लगातार हो रही है। खेती आज एक घाटे का सौदा बन गया है। गाँव में कृषि के लिए सिंचाई की सुविधा न के बराबर है। बिजली जब शहरों में नही है तो गाँव में क्या होगी। अब वो दिन नही रहे जब मानसून पर आधारित खेती होती थी आख़िर मौसम के मिजाज को हम इंसानों ने बदल जो दिया है। खेती के लिए बीज-खाद और कीटनाशक , इन सबका प्रबंध करना किसानों के लिए खासकर छोटे किसानों के लिए बहुत ही मुश्किल होता है। कई जिलों में कृषि के विकास के लिए कृषि विज्ञानं केन्द्रों की स्थापना की गई थी लेकिन वे भी ब्यवस्था की भेंट चढ़ गए। खेती के छोटे खर्चों के लिए कृषक कर्ज लेते है जो कभी-कभी उनकी मौत का कारण बन जाता है। अभी हाल ही में एक ख़बर ने मेरा दिल दहला दिया , एक गाँव में एक महिला ने पहले अपने तीन छोटे बच्चों को कुए में फ़ेंक दिया और फिर ख़ुद कूदकर मर गई। ये है हमारे देश की तस्वीर जहाँ कुछ लोगों के कुत्ते भी इंसानों से बेहतर भोजन पाते है वही कई लोग भूख की वजह से खुदखुशी करने को मजबूर होते है। आखिरकार भारत के लोग इतने संतोषी है तभी तो वे इंडिया से पीछे रह जा रहे है..... मन तो करता है की सब कुछ बदल दूँ लेकिन फिर ये सोचता हूँ की कही लोग बदलने से ही इनकार न कर दे। लेकिन उम्मीद अभी बाकी है जब तक की हम बाकी है.........

Tuesday, March 31, 2009

मिक्स ख़बर


आजकल नेताओं को रात में सोते समय भी सपने आने लगे है , हालत ये हो गई है की वे कही भी कुछ बोलने से पहले कई बार अभ्यास करने लगे है। भाई चुनाओं के समय में ही तो चुनाव आयोग के पास कुछ करने की ताक़त होती है वरना बाकी समय तो वो आराम ही करता है। लेकिन आजकल ये नेताओं को पानी पिला रहा है। अब देखिये न बेचारे वरुण गाँधी दूसरों को पानी पिलाने के चक्कर में ख़ुद ही पानी पी गए। चुनाव आयोग ने तो जो किया सो किया लेकिन मायावती ने तो कुछ दिन जेल में रहने की ब्यस्था करवा ही दी। बेचारे ने अतिउत्साह में न जाने क्या कह दिया की अब सारा उत्साह ही खत्म हो गया। उधर सर्वोच्च न्यायलय ने संजय दत्त को चुनाव लड़ने की अनुमति देने से मना कर दिया। अब अमर सिंह का क्या होगा। इससे कम से कम सपा के कार्यकर्ता तो जरुर खुश हुए होंगे। दत्त साहब भी कहा परेशां हो रहे है, सारा काम वही करेंगे तो बाकी लोग क्या करेंगे। इस बार कई अधिकारी भी चुनाव मैदान में है, बेचारों को पॉवर की आदत सी हो गई है, नौकरी के बाद अब नेता बनना चाहते है।

हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम कहते है की युवाओं को राजनीति में आना चाहिए , बिल्कुल सही है लेकिन युवाओं को मौका कौन दे रहा है । सिर्फ़ वही युवा आ पा रहे है जिनके पास विरासत है।लोकसभा चुनाओं के लिए २५ लाख रुपया से ज्यादा नही खर्च किया जा सकता है , ऐसा चुनाव आयोग का आदेश है, हवाई जहाज और हेलीकाप्टर के खर्च को अलग रखा गया है। खर्च कितना हो रहा है ये सभी देख रहे है। आजकल तो टिकट पाने के लिए पैसा लगता है । अरे भाई अब नेता वही बनता है जिसके पास धन हो, ताक़त हो। सुना है की उत्तर प्रदेश के चर्चित माफिया को कोर्ट ने नामांकन के लिए जेल से बाहर जाने की अनुमति नही दी है, कम से कम कोर्ट तो अच्छे से अपना काम कर रहा है, चलो कुछ तो ठीकठाक हो रहा है। उधर यू पी ऐ में प्रधानमंत्री बनने को लेकर घमासान मचा हुआ है , अब कौन बताये की भइया पी.एम् तो एक ही बनेगा। ज्यादा जरुरी हो तो एक-एक साल के लिए बन जाओ, और कुछ नही तो अपनी हसरत पूरी कर लो ,बाकी तो भगवान् भरोसे ही है। उधर मायावती भी दिल्ली जाने को बेकरार है, अरे भाई दिल्ली में भी तो अपनी मूर्तियाँ लगवानी है, स्टेडियम को तोड़कर पार्क बनाना कोई इनसे सीखे, खेल-खिलाड़ी चूल्हे में जाए , पार्क ज्यादा जरुरी है ,आख़िर सार्वजनिक धन का इससे बेहतर उपयोग क्या हो सकता है। सुना है की राजस्थान में गहलोत जी को गुस्सा आ गया है, कह रहे है की लड़का-लड़की हाथ में हाथ डालकर घूमे तो कार्यवाही होगी, सबसे बड़ा अपराध तो यही है न। आई पी अल भी साउथ अफ्रीका भाग गया , बेचारों को जल्दी थी, अरे भाई बड़े लोगों का तमाशा है, यहाँ नही तो कही और सही, जानते थे की अप्रैल में चुनाव होंगे तो थोड़ा आगे-पीछे कर लेते, अब चुनाव की डेट तो बदली नही जायेगी, कौन समझाये इन लोगों को।

आज के लिए इतना बहुत है, गर्मियों का मौसम है , हाजमा ख़राब हो सकता है। जय हो,

जन भाषा हिन्दी



साथियों मै अक्सर ये सोचता हूँ की हमारे भारत में सबसे ज्यादा लोग हिन्दी बोलते है फिर भी हम आज हिन्दी को वो स्थान नही दिला पाये जिसकी वो हक़दार है। हिन्दी हमारी भाषा ही नही है बल्कि ये हमारी पचान है, हमारा धर्म है। अक्सर ये खबरें आती है की लोग अंग्रेजी न बोल पाने की वजह से अपनी जान तक दे देते है , मै अंग्रेजी का विरोधी नही हूँ, एक भाषा के तौर पे उसका अध्ययन जरुरी है लेकिन अपनी हिन्दी भाषा की कीमत पर कत्तई नही। आज लोगों को हिन्दी बोलने में शर्म आती है। मैख़ुद हिन्दी को जीता हूँ और हिन्दी ही मेरा माध्यम है और हमेशा रहेगा। मुझे कोई शर्म नही आती है। हिन्दी भाषा के जो शब्द है वो अदभुतहै। कितनी सरल और निश्चल है ये भाषा । हिन्दी का अपमान मतलब इस राष्ट्र का अपमान , अपनी भारत माता का अपमान। और कोई भी सपूत अपनी माता का अपमान होते नही देख सकता है।


तो क्या हम और आप भाषा की इस ज़ंग में हमकदम होंगे। आए इस ज़ंग को सुबह होने तक जारी रखें, जय हिन्दी -जय हिन्दुस्तान।


अब कुछ बिस्मिल के बारे में, जिसमे उनका इस हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम दिखता है,


बिस्मिल की कल्पना कोरी नही थी ,उनमे बलिदान की प्रखर भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। हिन्दुस्तान के प्रत्येक नागरिक में हिन्दी भावना,हिन्दी भाषा के प्रति अगाध प्रेम तथा भारतीयता की सोच प्रस्तुत करती हुई उनकी इस कविता का यहाँ प्रसंगवश उल्लेख कर रहा हूँ,


न चाहूँ मान दुनिया में ,न चाहूँ स्वर्ग को जाना


मुझे वर दे यही माता,रहूँ भारत पे दीवाना


करूँ मै कोम की सेवा,पड़े चाहे करोड़ों दुःख


अगर फिर जन्म लूँ आकर तो हो भारत में ही आना


मुझे हो प्रेम हिन्दी से,पढूं हिन्दी,लिखूं हिन्दी


चलन हिन्दी चलूँ हिन्दी पहनना ओढ़ना खाना


रहे मेरे भवन में रोशनी हिन्दी चिरागों की


की जिसकी लौ पे जलकर खाक हो बिस्मिल सा परवाना



पाश का मोहपाश


मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नही होती

पुलिस की मार सबसे खतरनाक नही होती

गद्दारी लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नही होती

बैठे-बिठाये पकड़े जाना बुरा तो है

सहमी सी चुप्पी में जकडे जाना बुरा तो है

पर सबसे खतरनाक नही होता

सबसे खतरनाक होता है

मुर्दा शान्ति से मर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौटकर घर आना

सबसे खतरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना

सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है

आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो

आपकी नज़र में रुकी होती है

सबसे खतरनाक वह आँख होती है

जो सब कुछ देखते हुए भी जमी बर्फ होती है

जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है

जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पे ढलक जाती है

जो रोजमर्रा के क्रम की पीती हुई

एक लयहीन दोहराव के उलटफेर में खो जाती है

सबसे खतरनाक वह रात होती है

जो जिन्दा रूह के आसमानों पर ढलती है

जिसमे सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआ-हुआ करते गीदड़

हमेशा वे अंधेरे बंद दरवाजों और चौखटों पर चिपक जाते है

सबसे खतरनाक वह दिशा होती है

जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाए

और उसकी मुर्दा धुप का कोई टुकडा

आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए

-पाश

कितने आजाद है हम


आज देश आजाद है,परन्तु जितनी आजादी हमें मिलनी चाहिए , उतनी नही मिली। पहले हम पराधीन थे , आज स्वाधीन । अर्थात पहले दूसरो की गुलामी करनी पड़ती थी , आज अपने ही देश के पूजीपतियोंऔर सरकारों के अधीन रहना पड़ रहा है। आम आदमी का जीवन-स्तर ऊँचा उठाने की जो कल्पना आजादी के समय की गई थी वह आज तक कल्पना ही रह गई है। आज एक तरफ़ इंडिया है तो दूसरी तरफ़ है भारत। इंडिया चमक रहा है तो भारत अंधेरों में भटक रहा है।

बिस्मिल ने सही कहा है............

तुम्हारी कौमसे वाकिफ हैं सब हिन्दोस्तान वाले

मगर अब कौन आकर कब्र पर आंसू बहाताहै।

खुदा , तूं मौत दे देना , न ऐसी जिंदगी देना ,

वतन वालों की हालत पे कलेजा मुह को आता है।

प्रश्न भाषण का नही है , प्रश्न शासन का भी नही है ,प्रश्न उस ब्यवस्था का है जिसे बैसाखियों के सहारे उठाया जा रहा है

राष्ट्रीयता की बात करने वालों पर सरकार की कृपा की बजाये कोडें पड़ते हो । ऐसे देश में जहाँ शहीदों की माताएं -बेवायें -बहनें भूखी मरती हों , उनके परिवार के लोग सड़कों पे अपना दम तोड़ते हों ,और बेईमान लोग अपना घर भर रहे हों ,जन्म लेने से तो बेहतर है की स्वयं को या तो उन्ही शहीदों की तरह अपने गले में ख़ुद फंदा डालकर समाप्त कर दिया जाए या फिर शस्त्र उठाकर इन सबसे खुला संघर्ष किया जाए।

Monday, March 30, 2009

मेरा गाँव......................


गाँव का जिक्र आते ही मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है । जब भी मौका मिलता है मै तुंरत अपने गाँव की तरफ़ चल देता हूँ। जब भी मै कोई गाँव देखता हूँ तो अपने गाँव की याद आने लगती है, ऐसा लगने लगता है की वो मुझे अपने पास बुला रहा है। गाँव का सीधा-साधा जीवन , सीधे-साधे लोग , मुझे शुरू से ही प्रिय रहा है । सच ही कहा गया है की भारत की आत्मा गाँव में बसती है लेकिन सच कहूँ तो ये आत्मा आज दुखी है।वजह तो सब लोग जानते ही है। आज मजबूरी में लोग गाँव को छोड़कर शहरों की तरफ़ जाने को मजबूर हो रहे है । ये सीधे-साधे ग्रामीण जब शहरों में जाते है तो वहा पे इनके साथ अच्छा ब्यवहार नही होता है। यार आप ही बताओ कोई अपना घर छोड़ के जाना चाहता है, नही न।


अपने गाँव की याद में एक छोटी सी कविता लिखी है मैंने,,,,,,,,,,,,,,,,


याद फिर आने लगा है मुझको मेरा गाँव


कुछ टूटते कुछ टूटे घरों का गाँव


कुछ मंदिरों कुछ मस्जिदों और शिवालों का गाँव


सरसों के खेत और आम के बागों का गाँव


वो बड़ा तालाब और उसके अंदर मछलियाँ


बैठकर मछली पकड़ते बच्चों का गाँव


दादा-दादी और मेरे बुजुर्गों का गाँव


मुझे चाचा-भइया कहने वाले बच्चों का गाँव


मुझको अपने पास बुलाने वाला मेरा गाँव


याद फिर आने लगा है मेरा गाँव



वोट फॉर चेंज.................



एक बार फिर लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव यानी आम संसदीय चुनाव का समय आ गया है। पूरे देश में चुनाव प्रचार जोरो पर है । सभी राजनितिक दल बड़े-बड़े दावे करके जनता को एक बार फिर से ठगने के लिए मैदान में आ गए है। यानी जनता दर्शक की भूमिका में है और वो चुपचाप तमाशे का आनंद ले रही है। लेकिन इस बार के चुनाओं में कोई हलचल नही दिखाई दे रही है ,जाहिर है पार्टियों के पास कहने को नया कुछ है भी तो नही। ऐसा नही है की भारत में मुद्दे नही है बल्कि पार्टियाँ उनको मुद्दा बनाना नही चाहती है। और मतदाताओं में इतना साहस नही है की वो पार्टियों को मजबूर कर सके की वे जनता की बात सुन सके। जनता तो मतदान के दिन ढाई बाय ढाई के केबिन में अपना निर्णय देगी। मुझे लगता है की जनता के पास भी ज्यादा आप्शन नही है , अंधे और लंगडे में से उसे किसी न किसी को चुनना हे है जैसे नागनाथ वैसे सांपनाथ। .एक बात जो हमेशा से मुझे ब्यथित करती रही है की लोग मतदान के दिन अपना मत नही डालते है और फिर पॉँच साल तक सरकार को गाली देते रहते है।मतदान के दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है और लोग वोट न देकर पिकनिक मनाते है। भाई गाली देने से तो कुछ नही होने वाला है, इससे बेहतर तो होगा की हम सब मिलकर अपना मत डाले और सही प्रतिनिधियों को चुने। आजकल के नौजवानों को सरकार और ब्यवस्था से सबसे ज्यादा शिकायत रहती है लेकिन युवा खासकर पढ़ा-लिखा युवा मत डालना ही नही चाहता है। भाई मै तो अपने मत का प्रयोग करूँगा क्योंकि ये मेरा अधिकार है और आप सबसे यही कहूँगा की ................. अब बहुत हो चुकी ये चुप्पी , बहुत हो गया अपमान , घर से निकलो वोट तो डालो, तभी तो बदलेगा हिंदुस्तान, तभी बनेगा राष्ट्र महान। जय हो लोकतंत्र की ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Saturday, March 28, 2009

Suicide attack on Pakistan mosque kills dozens
Official says death toll likely to rise after strike during Friday prayers
Suicide bomber kills dozens in Pakistan mosqueMarch 27: A suicide bomber kills dozens of people in Pakistan।
आख़िर कब तक निर्दोषों की जाने जाती रहेगी, किसी को क्या हक है किसी का लहू बहाने का, इन कातिलों को ये नही पता की जब वो किसी की जान लेते है तो उस आदमी का पूरा परिवार बिखर जाता है और ताउम्र मर - मर के जीता है। संसार का कोई भी धर्म इस तरह के कृत्य को जायज नही ठहराता है। कम से कम अब तो इस तरह की घटनाओ को किसी मजहब से नही जोड़ना चाहिए , इसे सिर्फ़ मानवता के दुश्मन के रूप में लेना चाहिए.

Saturday, January 24, 2009

कहा है इंसानियत....................

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के एक गाँव के ६० से ज्यादा लोग एक बस हादसे में मारे गए। सबसे बड़ी बात ये की जिस बस में ये लोग सवार थे वो जिले के परिवहन दफ्तर में कंडम के रूप में दर्ज थी यानि इस बस को सड़क पर नही चलाया जा सकता था लेकिन वाह रे भ्रस्टाचार , जिसकी वजह से कई परिवार उजड़ गए , लोग बेमौत मारे गए। हो सकता है आपको लगे की ये बात काफी पुरानी है लेकिन साथियों बात इसकी नही है , बात है उस सिस्टम की जिसकी वजह से ये सब हुआ। जिस वक्त सड़क पर ये बस जल रही थी ,प्रदेश सरकार के कई मंत्री और अधिकारीगड़ आगरा में एक विवाह समारोह में शामिल होने जा रहे थे, और वो समारोह प्रदेश के उर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय के यहाँ था। सड़क पर लोग जल कर मरते रहे लेकिन किसी ने वहा रूककर उनको बचाने की कोशिश नही की। आख़िर आप ऐसा कैसे कर सकते है की आपके सामने कुछ लोग मर रहे हो और आप उनको देखने के बाद भी कुछ न करे । क्या यही है इंसानियत , जिसकी हम दुहाई देते रहते है । अपने लिए तो सभी जीते है ,मजा तो तब है की आप औरो के बारे में भी सोचो । सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है जब कुछ लोग इस पर राजनीती करने लगते है, जब हम किसी अपने को खो देते है तो कितनी तकलीफ होती है ,तो यार जब आप उस पर राजनीती करते हो तो उन परिवारों को कितनी तकलीफ होती होगी , इसके बारे में भी सोचना चाहिए....................
आज यही तक , तब तक के लिए जय राम जी की
अगर कुछ ग़लत लिखे हो तो उसके बारे में लिखियेगा ...........................