Wednesday, August 12, 2009

कुछ नज्में.............


नींद इस सोच से टूटी अक्सर

किस तरह कटती हैं रातें उसकी - परवीन शाकिर
ऐसे मौसम भी गुजारे हमने

सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी - परवीन शाकिर
आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते

अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते - अकबर इलाहाबादी
अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जायेंगे

तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पायेंगे - अहमद हमदानी


ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू सँवारे

मेरे हाथ से संवरते, तो कुछ और बात होती- आगा हश्र
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी

कुछ मुझे भी खराब होना था - मजाज लखनवी
न जाने क्या है उस की बेबाक आंखों में

वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा लगे- कैसर उल जाफरी
किसी बेवफा की खातिर ये जुनूं फराज कब तलक

जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ- अहमद फ़राज


काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें

इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें- अख्तर शीरानी
इस से पहले कि बेवफा हो जायें

क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें- अहमद फराज
इस पुरानी बेवफा दुनिया का रोना कब तलक

आइए मिलजुल के इक दुनिया नई पैदा करें- नजीर बनारसी
हम अक्सर दोस्तों की बेवफाई सह तो लेते हैं

मगर हम जानते हैं दिल हमारे टूट जाते हैं- रोशन नंदा

1 comment:

Adhinath said...

बढ़िया है आलोक जी ...........
आज बहुत दिनों बाद आपके नज़्म देखने को मिले..........