Saturday, March 1, 2008

गैर जिम्मेदार जन प्रतिनिधि

आज हमारे जन प्रतिनिधि क्या कर रहे है ये बात किसी से छुपी नही है। अगर कुछ पीछे की घटनाओ को याद करे तो हम पाएंगे की चाहे वो संसद हो या राज्यों की विधानसभाये ,कमोबेश हर सदन मे ऐसी घटनाएँ घट चुकी है जिनसे सदन की गरिमा का हनन हुआ है। क्या हमारे जनप्रतिनिधि ये नही जानते की हमारा देश किन समस्याओं से गुजर रहा है । अगर सिर्फ़ सांसदों की बात करे तो पाँच वर्ष मे इनके ऊपर भारत सरकार का लगभग ९०० करोर रूपया खर्च होता है। अगर संसद की बात करे तो २६,००० रूपया प्रति मिनट का खर्च आता है संसद के चलने मे ,लेकिन हमारे देश के सम्मानित जनप्रतिनिधियों को इससे कोई फर्क नही पड़ता है । जिस देश मे इतनी समस्याएँ हो वहा पर सदन के कार्यों को बाधित करना आख़िर कौन सी समझदारी है। जाहिर है उनके ऐसे कार्यो से जरूरी मुद्दों पर चर्चा नही हो पाती है और लोकहित के कार्य प्रभावित होते है। लेकिन जब इनको अपना वेतन बढ़वाना होता है तो ये सारे लोग एकमत नजर आते है।
इसके लिए राजनीतिक दल भी कम दोषी नही है । आज उनके अन्दर लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी होती जा रही है। हर दल की अपनी एक अलग विचारधारा होती है चाहे वो नीतियों को लेकर हो या कार्यक्रमों को लेकिन फिर भी उनमे आपस मे संवाद होता है जिसके आधार पर सहमति या असहमति बनती है। जबकि वर्तमान मे उनके अन्दर संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न हो रही है और सदस्यों के अंदर सुनने का धैर्य समाप्त हो रहा है जो की अच्छा लक्षण नही है।

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