Monday, April 13, 2009

फिर वही सब............. आख़िर कब तक

एक तरफ़ तो हम लोग भारत को २१ वी सदी में ले जाने की बात कर रहे है वही दूसरी तरफ़ हमारे देश के शीर्ष राजनीतिक दल लोकसभा चुनाओं में देश में नकारात्मक माहौल बनाने में लगे हुए है। किसी पार्टी की तरफ़ से कोई भी राजनीतिज्ञ कुछ ऐसा नही बोल रहा है जिसका कुछ सार्थक अर्थ निकाला जा सके। हर पार्टी एक - दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर रही है जिससे इस देश की राजनीतिक परिपक्वता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बी जे पी कांग्रेस को १२५ साल बूढा बता रही है तो कांग्रेस बी जे पी को अरब सागर में फेंकने की बात कह रही है। ये तो कुछ बानगी भर है जो हिंदुस्तान की दो शीर्ष पार्टियां ऐसे मौके पे कर रही जब देश में १५ वी लोकसभा के चुनाव हो रहे है। सपा जैसे दल भला कैसे पीछे रहते तो मुलायम सिंह कंप्यूटर और अंग्रेजी स्कूलों के ही पीछे पड़ गए। सुना है की नेता बनने से पहले वे एक शिक्षक थे , उसके बाद भी ऐसी बात कर रहे है तो फिर अब भगवान ही बचाए। उधर दक्षिण की एक पार्टी लिट्टे के समर्थन में बोल रही है। कुल मिलाकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर बखूबी जारी है। अब दक्षिण से शुरू हुआ सस्ते में चावल देने का प्रचलन छत्तीसगढ़ तक पहुच गया है। चावल २ रुपये प्रति किलो दिया जा रहा है या नही , ये एक विषय हो सकता है। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ से किसानो की आत्महत्या की खबरें आ रही थी। सरकार चावल की बात तो कर रही है लेकिन चावल उगाने वाले किसानो के बारे में बात करने का समय उसके पास नही है। अब तक न जाने कितने किसानो की मौत हो चुकी है और लगातार हो रही है। खेती आज एक घाटे का सौदा बन गया है। गाँव में कृषि के लिए सिंचाई की सुविधा न के बराबर है। बिजली जब शहरों में नही है तो गाँव में क्या होगी। अब वो दिन नही रहे जब मानसून पर आधारित खेती होती थी आख़िर मौसम के मिजाज को हम इंसानों ने बदल जो दिया है। खेती के लिए बीज-खाद और कीटनाशक , इन सबका प्रबंध करना किसानों के लिए खासकर छोटे किसानों के लिए बहुत ही मुश्किल होता है। कई जिलों में कृषि के विकास के लिए कृषि विज्ञानं केन्द्रों की स्थापना की गई थी लेकिन वे भी ब्यवस्था की भेंट चढ़ गए। खेती के छोटे खर्चों के लिए कृषक कर्ज लेते है जो कभी-कभी उनकी मौत का कारण बन जाता है। अभी हाल ही में एक ख़बर ने मेरा दिल दहला दिया , एक गाँव में एक महिला ने पहले अपने तीन छोटे बच्चों को कुए में फ़ेंक दिया और फिर ख़ुद कूदकर मर गई। ये है हमारे देश की तस्वीर जहाँ कुछ लोगों के कुत्ते भी इंसानों से बेहतर भोजन पाते है वही कई लोग भूख की वजह से खुदखुशी करने को मजबूर होते है। आखिरकार भारत के लोग इतने संतोषी है तभी तो वे इंडिया से पीछे रह जा रहे है..... मन तो करता है की सब कुछ बदल दूँ लेकिन फिर ये सोचता हूँ की कही लोग बदलने से ही इनकार न कर दे। लेकिन उम्मीद अभी बाकी है जब तक की हम बाकी है.........

1 comment:

Adhinath said...

bilkool ummid baki hai hum jamane ko badalne ki baat karte hain,
ye to apna bharat hai. Desh hamara hai chinta hume hi karna hogi.